मुगलों का इतिहास हिंदुस्तान मुगलों का इतिहास mugalon ka Raj kab tak Raha

मुगलों का इतिहास हिंदुस्तान मुगलों का इतिहास mugalon ka Raj kab tak Raha

हेलो दोस्तों अस्सलाम वालेकुम आइए जानते हैं मुगलों का साम्राज्य मतलब मुगलों ने कब तक हिंदुस्तान पर राज किया और किस तरह से अपना इतिहास रचा और कितने वर्ष में जाकर मुगलों ने अपना नाम रोशन करें मुगलों का एक ऐसा इतिहास जो दुनिया भर में हैरान कर देने वाला इतिहास है और मुगल एक ऐसी संस्था जो भारत के अंदर टॉप पर रही है जो हर जंग जीते हैं इसीलिए हिंदुस्तान पर इतिहास उन्होंने रचा
चलो आगे जानती है मुगलों के इतिहास के बारे में और जैसे कि मेरे दोस्तों मुगलों ने हिंदुस्तान के अंदर क्या-क्या इत्यादि चीज छोड़ कर गए हैं आप इमेज देख कर समझ जाएंगे




मुगल राज्यवंश का परिचयमध्य एशिया में दो महान जातियों का उत्कर्ष हुआ जिनका विश्व के इतिहास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। इनमें से एक का नाम तुर्क और दूसरी का मंगोल था। तुर्कों का मूल स्थान तुर्किस्तान और मुगलों या मंगोलों का मंगोलिया था। यह दोनों ही जातियाँ प्रारम्भ में खानाबदोश थीं और अपनी जीविका की खोज में इधरउधर घूमा करती थीं। यह बड़ी ही वीरसाहसी तथा लड़ाकू जातियाँ थीं और युद्ध तथा लूटमार करना इनका मुख्य पेशा था। यह दोनों ही जातियाँ कबीले बनाकर रहती थीं और प्रत्येक कबीले का एक सरदार होता था जिनके प्रति कबीले के लोगों की अपार भक्ति होती थी। प्रायः यह कबीले आपस में लड़ा करते थे परन्तु कभीकभी वह वीर तथा साहसी सरदारों के नेतृत्व में संगठित भी हो जाया करते थे। धीरेधीरे इन खानाबदोश जातियों ने अपने बाहुबल से अपनी राजनीतिक संस्था स्थापित कर ली और कालान्तर में इन्होंने न केवल एशिया के बहुत बड़े भाग पर वरन दक्षिण यूरोप में भी अपनी राजसत्ता स्थापित कर ली। धीरेधीरे इन दोनों जातियों में वैमनस्य तथा शत्रुता बढ़ने लगी और दोनों एकदूसरे की प्रतिद्वन्दी बन गयीं। तुर्क लोग मुगलों को घोर घृणा की दृष्टि से देखते थे। इसका कारण यह था कि वे उन्हें असभ्यक्रूर तथा मानवता का शत्रु मानते थे। तुर्कों में अमीर तैमूर तथा मुगलों में चंगेज़ खां के नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। यह दोनों ही बड़े वीरविजेता तथा साम्राज्यसंस्थापक थे। इन दोनों ही ने भारत पर आक्रमण किया था और उसके इतिहास को प्रभावित किया था। चंगेज़ खाँ ने दासवंश के शासक इल्तुतमिश के शासन काल में और तैमूर ने तुगलकवंश के शासक महमूद के शासनकाल में भारत में प्रवेश किया था। यद्यपि चंगेज़ खाँ पंजाब से वापस लौट गया था परन्तु तैमूर ने पंजाब में अपनी राजसंस्था स्थापित कर ली थी और वहाँ पर अपना गवर्नर छोड़ गया था। मोदीवंश के पतन के उपरान्त दिल्ली में एक नये राजवंश की स्थापना हुई जो मुगल राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस राजवंश का संस्थापक बाबर था जो अपने पिता की ओर से तैमूर का और अपनी माता की ओर से चंगेज़ खाँ का वंशज था। इस प्रकार बाबर की धमनियों में तुर्क तथा मंगोल दोनों ही रक्त प्रवाहित हो रहे थे। परन्तु एक तुर्क का पुत्र होने के कारण उसे तुर्क ही मानना चाहिये न कि मंगोल। अतएव दिल्ली में जिस राजवंश की उसने स्थापना की उसे तुर्कवंश कहना चाहिये न कि मुगलवंश। परन्तु इतिहासकारों ने इसे मुगल राजवंश के नाम से पुकारा है और इसे इतिहास की एक जटिल पहेली बना दिया है। अब इस राजवंश के महत्त्व पर एक विहंगम दॄष्टि डाल देना आवश्यक है_



मुगल राजवंश का महत्त्व: मुगल राजवंश का भारतीय इतिहास में बहुत बड़ा महत्त्व है। इस राजवंश ने लगभग २०० वर्षों तक भारत में शासन किया। बाबर ने १५२६ ई० में दिल्ली में मुगलसाम्राज्य की स्थापना की थी और इस वंश का अन्तिम शासक बहादुर शाह १८५८ ई० में दिल्ली के सिंहासन से हटाया गया था। इस प्रकार भारतवर्ष में किसी अन्य मुस्लिम राजवंश ने इतने अधिक दिनों तक स्वतन्त्रतापूर्वक शासन नहीं किया जितने दिनों तक मुगल राजवंश ने किया_

न केवल काल की दृष्टि से मुगल राजवंश का भारतीय इतिहास में महत्त्व है वरन विस्तार की दृष्टि से भी बहुत बड़ा महत्त्व है। मुगल सम्राटों ने न केवल सम्पूर्ण उत्तरीभारत पर अपना एकछत्र साम्राज्य स्थापित किया वरन दक्षिण भारत के भी एक बहुत बड़े भाग पर उन्होंने अपनी प्रभुत्वशक्ति स्थापित की। मुगल सम्राटों ने जितने विशाल साम्राज्य पर सफ़लतापूर्वक शासन किया उतने विशाल साम्राज्य पर अन्य किसी मुस्लिम राजवंश ने शासन नहीं किया_



शांति तथा सुव्यवस्था के दृष्टिकोण से भी मुगल राजवंश का भारतीय इतिहास में बहुत बड़ा महत्त्व है। मुस्लमानों में उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम न होने के कारण सल्तनत काल से राजवंशों का बड़ी तेज़ी से परिवर्तन होता रहा। इसका परिणाम ये होता था कि राज्य में अशान्ति तथा कुव्यवस्था फैल जाती थी और अमीरों तथा सरदारों के षड्यन्त्र निरन्तर चलते रहते थे। मुगल राज्यकाल में एक ही राजवंश का निरंतर शासन चलता रहा। इससे राज्य को स्थायित्व प्राप्त हो गया। इसमें सन्देह नहीं कि मुगलसम्राटों ने साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण किया और विजय यात्राएँ की परन्तु वे अपने राज्य में आन्तरिक शान्ति तथा सुव्यवस्था बनाये रखने में पूर्ण रूप से सफल सिद्ध रहे_


इस आन्तरिक शान्ति तथा सुव्यवस्था के परिणाम बड़े महत्त्वपूर्ण हुए। मुगल सम्राटों ने अपने सम्पूर्ण राज्य में एक प्रकार की शासनव्यवस्था स्थापित कीएक प्रकार के नियम लागू किये और एक प्रकार के कर्मचारियों की नियुक्ति की। इससे एकता की भावना के जागृत करने में बड़ा योग मिला। शान्ति तथा सुव्यवस्था के स्थापित हो जाने से देश की आर्थिक उन्नति बड़ी तेज़ी से होने लगी। इससे राज्य के वैभव तथा गौरव में बड़ी वृद्धि हो गई। मुगल सम्राटों का दरबार अपने वैभव तथा अपने गौरव के लिये दूरदूर तक विख्यात था। वे न केवल स्वयं वरन उनकी प्रजा भी सुखी तथा सम्पन्न थी_


देश की सम्पन्नता का परिणाम हमें उस काल की कला की उन्नति पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। दिल्लीआगरा तथा फ़तेहपुर सीकरी में जिन भव्य भवनोंमस्जिदोंमकबरों तथा राजप्रसादों का निर्माण किया गया है वे उस काल की स्मृति के द्योतक हैं। ताजमहलतख्तेताऊसकोहेनूर आदि इस काल की सम्पन्नता के ज्वलंत प्रमाण हैं। सभी ललित कलाओं की इस काल में उन्नति हुई जिनका विकास केवल शान्तिमय वातावरण में ही हो सकता है। साहित्य की चरमोन्नत्ति भी इस काल की सम्पन्नता तथा शान्तिमय वातावरण की द्योतक है। वास्तव में मुगल काल का गौरव अद्वितीय तथा अनुपम है_

मुगल सम्राटों ने भारतीय इतिहास में एक नई नीति का सूत्रपात किया। वह नीति थी सहयोग तथा सहिष्णुता की। इस काल में सल्तनतकाल की भाँति धार्मिक अत्याचार नहीं किये गये। यद्यपि बाबर ने भारत में हिन्दुओं के साथ जो युद्ध किये थे उन्हें उसने जेहाद’ का रूप दिया था परन्तु इसकी यह भावना केवल युद्ध के समय तथा रणक्षेत्र में रहती थीशान्ति काल में नहीं। हुमायूँ ने जीवनपर्यन्त अफ़गानों के साथ युद्ध किया और अपनी हिन्दु प्रजा के साथ उसने किसी प्रकार का अत्याचार नहीं किया। उसके पुत्र अकबर ने तो पूर्ण रूप से धार्मिक सहिष्णुता तथा सुलह की नीति का अनुसरण किया। उसने हिन्दुओं का आदर तथा विश्वास किया और उन्हें राज्य में ऊँचेऊँचे पद पर नियुक्त किया। इससे मुगल राज्य को सुदृढ़्ता प्राप्त हो गई। जब तक अकबर की उस उदार नीति का अनुसरण किया गया तब तक मुगल साम्राज्य सुदृढ़ तथा सुसंगठित बना रहा परन्तु जब औरंगज़ेब के शासन काल में इस नीति को त्याग दिया गया तब मुगलसाम्राज्य पतनोन्मुख हो गया_


मुगल राजवंश का एक और दृष्टिकोण से बहुत बड़ा महत्त्व है। इस काल में भारतवासी फिर विदेशों के घनिष्ठ सम्पर्क में आ गये। पूर्व तथा पश्चिम के देशों के साथ भारत का व्यापारिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्ध फिर स्थापित हो गया। पाश्चात्य देशों से यात्री लोग भारत में आने लगे जिससे भारतीयों के साथ उनका व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ने लगा और विचारों का आदानप्रदान भी होने लगा। इसका अन्तिम परिणाम ये हुआ कि भारत में यूरोपवासियों की राज्यसंस्थाएँ स्थापित हुईं और भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति पर पाश्चात्य देशों की सभ्यता तथा संस्कृति का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा_

अकबर का शासनप्रबन्ध: अकबर न केवल एक महान विजेता तथा साम्राज्यसंस्थापक था वरन वह एक कुशल शासक भी था। उसने अपनी शासनव्यवस्था को बड़े ही ऊँचे आदर्शों तथा सिद्धान्तों पर आधारित किया था। वह पहला मुसलमान शासक थाजिसने वास्तव में लौकिक शासन की स्थापना की। उसने राजनीति को धर्म से बिल्कुल अलग कर दिया और राज्य में मुल्ला मौलवियों तथा उलेमा लोगों का कोई प्रभाव न रहा। स्मिथ महोदय ने उसकी प्रशासकीय प्रतिभा तथा उसके शासन सम्बन्धी सिद्धान्त की प्रशंसा करते हुए लिखा है, “अकबर में संगठन की आलौकिक प्रतिभा थी। प्रशासकीय क्षेत्र में उसकी मौलिकता इस बात में पाई जाती है कि उसने इस सिद्धान्त को स्वीकार कर लिया कि हिन्दुओं तथा मुसलमानों के साथ समान व्यवहार होना चाहिये_


अकबर ने अपने शासन को धार्मिक सहिष्णुता तथा धार्मिक स्वतन्त्रता के सिद्धान्त पर आधारित किया था। वह ऐसे देश का सम्राट थाजिसमें विभिन्न जातियों तथा धर्मों के लोग निवास करते थेअकबर ने अपनी प्रजा को धार्मिक स्वतन्त्रता दे रखी थी। जो हिन्दु उसके दरबार में रहते थेउन्हें भी अपने धार्मिक आचारों तथा अनुष्ठानों के करने की पूरी स्वतन्त्रता थी। इतना ही नहींअपने हरम की हिन्दु स्त्रियों को भी उसने पूरी स्वतंत्रता दे रखी थी_


अकबर ने पूर्ण रूप से धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया। अकबर अपनी सभी प्रजा को चाहे वह जिस जाति व धर्म को मानने वाली हो समान दृष्टि से देखता था और अपनी जाति अथवा धर्म के कारण किसी को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता था। कानून की दृष्टि में सभी समान समझे जाते थे और सभी को समान रूप से न्यायप्राप्त था_

अकबर के शासन का तीसरा सिद्धान्त यह था कि उसने सरकारी नौकरियों का द्वार बिना जाति अथवा धर्म के भेदभाव के सभी लोगों के लिये खोल दिया था। वह नियुक्तियाँ प्रतिभा तथा योग्यता के आधार पर किया करता था। इससे योग्यतम व्यक्तियों की सेवाएँ राज्य को प्राप्त होने लगीं और उसकी नींव सुदृढ़ हो गई_

अकबर के शासन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह सैन्य बल पर आधारित न था वरन उसका मूलाधार प्रजा का कल्याण था। अकबर का शासन बड़ा ही उदार तथा लोक मंगलकारी था। वह जानता था कि जब उसकी प्रजा सुखी तथा सम्पन्न रहेगी तब उसके राज्य में शान्ति रहेगी तथा उसका राजकोष धन से परिपूर्ण रहेगा जिसके फलस्वरूप मुगल साम्राज्य की नींव सुदृढ़ हो जाएगी। अतएव उसने अपनी प्रजा के भौतिकबौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास का यथासम्भव प्रयत्न किया_



अकबर के शासन की यह भी विशेषता थी कि उसने सैनिक तथा प्रशासकीय विभाग के अफ़सरों को अलग नहीं किया था वरन प्रशासकीय विभाग के बड़ेबड़े पदाधिकारियों को सेनापति बना कर रणक्षेत्रों में भेजा करता था। राजा टोडरमलराजा भगवानदासमानसिंह आदि प्रशासकीय विभाग के बड़ेबड़े पदाधिकारी प्रायसैन्यसंचालन के लिये युद्धों में भेजे जाते थे। अकबर प्रायदो सेनापतियों को एक साथ भेजा करता था जिससे विश्वासघात की बहुत कम सम्भावना रह जाय_


अकबर के शासनसम्बन्धी आदर्शों तथा सिद्धान्तों का परिचय प्राप्त कर लेने के उपरान्त उसके केन्द्रीयप्रान्तीय तथा स्थानीय शासन का संक्षिप्त परिचय दे देना आवश्यक था_

अकबर के धार्मिक विचार तथा उसकी धार्मिक नीति अकबर बड़े ही उदार तथा व्यापक दृष्टिकोण का व्यक्ति था। विचारसंकीर्णता उसमें बिल्कुल न थी। बाल्यकाल से ही अकबर ऐसे वातावरण तथा ऐसे व्यक्तियों के सम्पर्क में था कि उसका उदार तथा सहिष्णु हो जाना स्वाभाविक था_



अकबर पर सर्वप्रथम प्रभाव अपने वंश का पड़ा। अकबर के पूर्वज बड़े ही उच्चादर्शों तथा उदार विचारों से प्रेरित थे_ अकबर का पूर्वज चंगेज़ खाँन इस भावना से प्रेरित था कि वह विश्व में शान्ति तथा न्याय का साम्राज्य स्थापित करने तथा सांस्कृतिक एकता के स्म्पन्न करने के लिये उत्पन्न हुआ है। अकबर का पितामह बाबर बड़ा ही उच्चकोटि का विद्वान तथा बड़े ही व्यापक दृष्टिकोण का व्यक्ति था। अकबर का पिता हुमायूँ बड़ा ही उदारदयालुसहिष्णुसुसंस्कृत तथा रहस्यवादी विचार का था। अकबर की माता भी बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी जिसका एक सूफ़ी मत के मानने वाले शिया परिवार में जन्म हुआ था। इस प्रकार बड़े ही उदार तथा व्यापक दॄष्टिकोणों के व्यक्तियों का रक्त अकबर की धमनियों में प्रवाहित हो रहा था और उसका उदार तथा सहिष्णु हो जाना स्वाभाविक ही था_

मुगलों का इतिहास



संगीत का भी अकबर पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वह मुगलतुर्कीअफ़गान तथा ईरानी अमीरों के साथ रहा था। अतएव उसमें साम्प्रदायिकता अथवा वर्गीयता की भावना का विकास न हो सका और उसमें विचार संकीर्णता न आ सकी। फलतवह अपने विचारों में बड़ा उदार हो गया और दूसरों के विचारों तथा दृष्टिकोणों के समझने की उसमें अद्भुत क्षमता उत्पन्न हो गई_



उसका सबसे बड़ा पुत्र सलीम था। उसके अन्य दो पुत्र मुराद तथा दानियल मद्यपान के वशीभूत हो कर परलोक सुधार गये थे। अतएव अब सलीम ही उसका सहारा था। परन्तु सलीम की आदतें तथा उसका व्यवहार सम्राट के लिये पीड़ाजनक बन गया। शहज़ादा शराबी तथा विलासप्रिय बन गया और सम्राट की आदेशों की उपेक्षा करने लगा। इससे सम्राट को बड़ी निराशा तथा बड़ा दुख हुआ। इसका सम्राट के स्वास्थय पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह बीमार रहने लगा। सलीम में कोई सुधार न हुआ और वह अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता ही गया। सलीम ने राजधानी के सन्निकट ही रहने का निश्चय कर लिया और जब कभी सम्राट उसे पश्चिमोत्तर प्रदेश अथवा दक्षिण में जाने का आदेश देता तो वह अपनी अनिच्छा प्रकट कर देता। फलतदक्षिण के युद्धों का संचालन करने के लिये सम्राट को स्वयं जाना पड़ा। सम्राट की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर सलीम इलाहाबाद को अपना निवासस्थान बनाकर स्वतन्त्र रूप से शासन करने लगा।

जब सम्राट को इसकी सूचना मिलीतो उसे बड़ी चिन्ता हुई। २१ अप्रैल ‌१६०१ को उसने बुरहानपुर से आगरे के लिये प्रस्थान कर दिया। सलीम ने खुल्ल्मखुल्ला विद्रोह कर दियापरन्तु सम्राट ने धैर्य से काम लिया और तुरन्त शहज़ादे के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की_



सम्राट ने दक्षिण से अबुलफ़ज़ल को बुला भेजापरन्तु सलीम ने मार्ग में ही ओरछा के सरदार वीरसिंह देव बुन्देला के द्वारा उसका वध करा दिया। जब सम्राट को इसकी सूचना मिली तो उसके हृदय पर गहरी चोट लगी और कुछ समय तक वह बेहोश पड़ा रहा। वह कई दिनों तक रोता रहा। अबुलफ़ज़ल की मृत्यु का सम्राट के स्वास्थय पर बुरा प्रभाव पड़ा। इस घृणित कार्य के कारण सम्राट सलीम से और अधिक अप्रसन्न हो गया। परन्तु हरम की स्त्रियों के प्रयास से बापबेटे में समझौता हो गया। सलीम फ़तेहपुर सम्राट के पास गया और उसे मनाया। सम्राट ने अपनी पगड़ी सलीम के सिर पर रख दी और उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया_

इस समझौते के बाद भी सलीम की आदतों तथा व्यवहारों में कोई परिवर्तन न हुआ और सम्राट का दुःख समाप्त न हुआ। वह पेट की पीड़ा का शिकार बन गयाजो संग्रहणी का रोग बन गया। रोग असाध्य सिद्ध हुआ और तेईस दिन की बीमारी के उपरान्त १६ अक्तूबर१६०५ ई० को सम्राट ने सदैव के लिये अपनी आँखे बंद कर लीं_

मृत्यु, निधन: मृत्यु सब के लिए प्रयुक्त हो सकता है। राम की मृत्यु, पशु की मृत्यु, पक्षी की मृत्यु, कीड़े-मकोड़े की मृत्यु इत्यादि। निधन का प्रयोग विशेष-विशेष मनुष्यों के संबंध में किया जाता है। गाँधी जी के निधन से देश की बड़ी हानि हुई।

राजा, सम्राट: राजा छोटे-बड़े सभी शासकों के लिये प्रयुक्त होता है, पर सम्राट बड़े राज्य वाले के लिये प्रयुक्त होता है_ देशी राजाओं का संगठन देश के लिये बड़ा हितकर हुआ है। नेपाल के महाराजा अब वैधानिक शासक के रूप में राज्य करेंगे। सम्राट अशोक बौद्ध थे।








हेलो दोस्तों अगर हमारी यह जानकारी आपको पसंद आई हो तो लाइक शेयर करना ना भूले और अपनी यार दोस्तों में शेयर करना भी ना भूले अगर आपको कोई भी जानकारी जाननी है तो हमें कमेंट में जरूर बताएं हम आपको जवाब जरूर देंगे लिखने में और टाइपिंग में कोईभी गलती हो गई हो तो उसे माफ करना हम फिर किसी न्यू जानकारी न्यू आर्टिकल के साथ में मिलेंगे जब तक के लिए अल्लाह हाफिज

Hindi State.in

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने